बिरसा मुंडा के प्रति - जी.एल. चित्रकूटी
कवि जी.एल. चित्रकूटी पहाड़ निरंतर छलनी हो रहे हैं नदियों की प्यास गहराती जा रही है पेड़ भयानक …
कवि जी.एल. चित्रकूटी पहाड़ निरंतर छलनी हो रहे हैं नदियों की प्यास गहराती जा रही है पेड़ भयानक …
पगडंडिया अपनी पदचाप सुनना मुड़कर अपने पैरों के निशान देखना कितना मधुर लगता है । झाड़ियों से…